चंद्रयान-3 की सफलता के बाद देश में कई दिन से खुशी का माहौल है। लोग लैंडर 'विक्रम' और रोवर 'प्रज्ञान' की गतिविधियों पर लगातार नज़र रख रहे हैं और यह बिल्कुल स्वाभाविक भी है। देश को गौरवान्वित करने वाली इस घटना से बेशक सभी भारतवासियों को खुशी मिली है और अपने देश की क्षमताओं पर भरोसा और बढ़ा है।
दूसरी बड़ी बात ये हुई है कि लोगों को इस पूरे घटनाक्रम के पीछे के विज्ञान को जानने की उत्सुकता पैदा हुई है। बहुत सारे लोगों को पहली बार पता चला है कि विज्ञान अपने आप में कितनी शानदार चीज है और इसके ज़रिए कितना कुछ हासिल किया जा सकता है। बहुत सारे लोगों को पहली बार पुख्ता प्रमाण देखकर यकीन हुआ है कि विज्ञान की कितनी ताकत है और यह कितना तार्किक है।
कोराेना महामारी में दिखी विज्ञान की ताकत
विज्ञान का एक और चमत्कार कोरोना महामारी के समय भी देखने को मिला था, जब सारी दुनिया एक अदृश्य वायरस की वजह से थम गई थी। उस समय दुनियाभर के धर्मगुरुओं ने अपने चमत्कारों के ज़रिए कोविड से लड़ने के दावे किए, लेकिन सब धरे के धरे रह गए। वहीं वैज्ञानिक प्रक्रियाओं के ज़रिए बनी वैक्सीन ने बंद पड़ी दुनिया को तुरंत वापस पटरी पर ला दिया।
इतने कम अंतराल में हुई इन दो बड़ी घटनाओं का आम जनमानस की सोच पर असर नहीं पड़ेगा, ये कहना तो कतई गलत होगा। ऐसी स्थिति में एक बात साफ है कि लोगों की सोच को वैज्ञानिक आधार देने का इससे बेहतर मौका हमारे देश में आज़ादी के बाद कभी नहीं आया है।
वैज्ञानिक सोच का प्रचार प्रसार ज़रूरी
हालांकि आज भी उन लोगों की कमी नहीं है जो विज्ञान से इन उपलब्धियों का श्रेय छीन लेना चाहते हैं। साथ ही ऐसे लोग भी बड़ी संख्या में हैं जो विज्ञान को बस ऐसे मौकों पर याद करना चाहते हैं जब उससे कोई बड़ी उपलब्धि मिले, अन्यथा वो उसी अवैज्ञानिक तरीके से अपना जीवन जीने में यकीन रखते हैं। लेकिन ऐसे कुछ लोग हमेशा मौजूद रहेंगे और उनके बीच रहते हुए ही वैज्ञानिक सोच का प्रचार प्रसार करना होगा।
प्रधानमंत्री का नारा 'चंदा मामा टूर के' भी लोगों को विज्ञान की असीम संभावनाओं की दिशा में सोचने के लिए मजबूर करेगा। हमारे संविधान में भी नागरिकों के बीच Scientific Temperament पर ज़ोर दिया है।
वैज्ञानिक सोच की मदद से ही हमारा देश सशक्त और आधुनिक बन सकता है और इसीलिए जीवन के हर पहलू में इस पर ज़ोर दिया जाना चाहिए।
जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान।
Write a comment ...